आज के दौर में जहां एक तरफ लोगों के पास खुद के लिए वक्त नहीं होता..दूसरों की मदद करना तो दूर की बात है वहीं दूसरी तरफ 30 साल की आशा राजपुरोहित गुजरात के डीसा में ‘सुदामा वृद्धाश्रम’ चला रहीं हैं। आशा इस वृद्धाआश्रम में 22 बुजुर्गों की सेवा करती है उनकी सेवा में कोई कमी न आए इसलिए उन्होंने खुद के परिवार, और अपने बेटे को भी खुद से दूर कर रखा है। आशा इन बुजुर्गों को ही अपना परिवार मानती हैं और इनकी देखरेख में लगी रहती हैँ।
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इस वृद्धा आश्रम का आरंभ 14 साल पहले उनके पिता कांतिलाल राजपुरोहित ने किया था। कांतिलाल राजपुरोहित ने आस-पास के बेसहारा और दिव्यांग बुजुर्गों की सेवा के लिए इस आश्रम को शुरु किया था।
लगभग 10 साल तक उन्होंने इस आश्रम को संभाला और बुजुर्गों की सेवा की जिसके बाद उनका निधन हो गया। पिता के जाने के बाद आश्रम की जिम्मेदारी बेटी ने बखूबी उठाई।
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आशा ने इस आश्रम को अपना सब कुछ समर्पित किया यहां तक की अपने गृहस्थ जीवन का त्याग तक कर दिया। और अपने बेटे को भी खुद से दूर कर दिया। ताकि पूरी निष्ठा के साथ इस ओल्ड एज होम को चलाया जा सके और बुजुर्गों की सेवा की जा सके।
फ़िलहाल यहां 22 लोग बुजुर्ग बड़ी ही खुशहाली से रहते हैं। फंड की कमी की वजह से आशा जी, ओल्ड एज होम का पूरा काम स्वंय करती हैं। फिर चाहे वो यहां की सफाई हो, खाना बनाना हो या फिर यहां के बुजुर्गों को समय-समय पर दवाई और खाना खिलाना हो.. आशा जी हमेशा इन बुजुर्गों की सेवा में हाजिक रहती हैं।
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अनजान बुजर्गों को दिल से अपना मानने वाली आशा बहन हम सभी के लिए एक मिशाल हैं।