पूरे भारत में न जाने कितने कितने ही दिव्यांग हैं अगर सिर्फ तमिलनाडु की बात करें तो 15 लाख से अधिक दिव्यांग लोग वहां मौजूद हैं… वहीं दिव्यांगों के कल्याण के लिए राज्य सरकार 82 विकलांग कल्याणकारी योजनाएं चलाती आ रही है..जोकि सराहनीय है लेकिन इन योजनाओं का फायदा उठाने के लिए दिव्यांग लोगों को फॉर्म भी भरना पड़ता है..और विकलांगता सर्टिफिकेट बनवा कर रजिस्ट्रेशन भी करना पड़ता है…लेकिन कम शिक्षित और ग्रामीण इलाकों में रहने वाले विकलांगों के लिए कागजी काम जैसे फॉर्म भरना मुश्किल होता है.. इस कारण कई बार बहुत से दिव्यांग लोग इस बात का फायदा नहीं उठा पाते हैं…ऐसे लोगों की मदद के लिए सुजाता कंथन एक संगठन चलाती हैं आपको बता दें कि सुजाता खुद एक दिव्यांग है… सुजाता तमिलनाडु की निवासी है वहां पर लोग उन्हें अक्का कहकर बुलाते हैं..सुजाता ने अभी तक हमारों दिव्यांगों को सरकारी और गैर सरकारी मदद मोहय्या कराई है…जिससे लोगों के जीवन में आसानी आई है…सुजाता की वजह से ही कई महिलाएं अपने पैरों पर खड़ी है और आत्मनिर्भर है।
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सुजाता कंथन डेवलपमेंट फॉरम फॉर विमेन विथ डिसेबिलिटी नाम का एक ट्रस्ट चलाती हैं और उसकी संस्थापक हैं..इस ट्रस्ट के जरिए सुजाता अक्का दिव्यांग लोगों के जीवन में रोशनी भरने का काम कर रही हैं। सुजाता का जीवन भी काफी उतार चढ़ाव भरा रहा है जब वह पैदा हुई थी तो वो पूरी तरह से स्वस्थ थी लेकिन 1.5 साल की उम्र में वो पोलियों की चपेट में आ गई..माता-पिता ने बहुत से डॉक्टर से इलाज कराया मगर कोई फायदा न हो सका।
स्कूल में सुजाता जब जाने लगी तो उनके लिए खास जूते बनवाए गए… लेकिन उन्हें दूसरे छात्रों से अलग बैठाया जाता था..बाकि छात्रों द्वारा उन्हें भेदभाव का भी सामना करना पड़ा.. दिव्यांग होने के कारण उनकी जिंदगी में कई परेशानियां आई… इसी कारण उन्होंने 10वीं के बाद स्कूल छोड़ दिया। लेकिन उनके अंदर आगे बढ़ने का जज्बा कभी कम न हुआ उन्होंने पैरों पर खड़े होने के लिए सेल्स गर्ल का काम किया। उसके बाद उन्होंने पीसीओ में काम किया और इस दौरान उन्हें कई अन्य दिव्यांग लोगों की मदद मिली इन्हीं लोगों से उन्हें सरकारी योजनाओं का पता चला जोकि दिव्यांग लोगों के लिए सरकार द्वारा चलाई जा रही थी…इससे पहले उनकों किसी योजना के लाभ के बारे में पता नहीं था.. जिसके बाद ही उन्होंने तय किया कि वह अन्य दिव्यांग लोगों की भी मदद करेंगी और उनके हक के लिए खड़ी होगी.. आज का आलम यूं है कि सुजाता जब भी किसी दिव्यांग से मिलती हैं उनका फॉर्म फिल करके उन्हें पेँशन और व्हीलचेयर दिलाने का काम करती हैं।
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कोविड के समय बहुत सारे दिव्यांग जोकि छोटी दुकान और स्टॉल चलाकर अपना गुजर बसर करते थे उनका काम थप पड़ गया था उस दौरान सुजाता ने ही एनजीओ द्वारा उन्हें आर्थिक सहायता मुहैय्या कराई और उनका काम करवाने में मदद की।
इसके अलावा सुजाता यहीं नहीं रुकी उन्होंने अपने दम पर तकरीबन 10 दिव्यांग स्टूडेंट्स को 2 लाख रुपये की स्कॉलरशिप भी दिलवाई… आज उनके ट्रस्ट से तकरीबन 400 दिव्यांग बच्चें जुड़े हैं वो अपने ग्रुप के साथ मिलकर राज्य के गरीब बच्चों को आरटीई के अंतर्गत मिलने वाली फ्री शिक्षा दिलाने में भी मदद कर रही हैं।