Savitribai Phule Special: शुरुआत से ही भारत की महिलाओं ने अपनी काबीलियत और अक्ल के दम पर पूरी दुनिया में पहचान बनाई है। कई ऐसी महिलाएं रही हैं जिन्होंने समय का रुख ही बदल दिया है। उन्ही में से एक महिला ऐसी भी रही हैं जिन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति लाने का काम किया। वो महिला जिसने भारतीय शिक्षा प्रणाली का रुख ही बदल दिया था। ये महिला थी सावित्रीबाई फुले(Savitribai Phule) जो भारत की पहली महिला शिक्षक रही हैं।
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सावित्रीबाई फुले की शादी 8 साल की उम्र में ही 13 साल के ज्योतिराव फुले से हो गई थी। उनकी सीखने में दिलचस्पी को देखते हुए ज्योतिराव ने उन्हें पढ़ना-लिखना सिखाया। महाराष्ट्र में जब समाज सेवा की बात आती है तो उनका नाम बहुत ऊपर लिखा जाता है। उन्होंने ब्रिटिश राज में भी भेदभाव को लेकर अपनी आवाज़ बुलंद की थीं और महिलाओं की विकास को लेकर काम करती थीं।
उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी में 18 स्कूलों का निर्माण किया। पहला स्कूल भिडेवाडा, पुने में शुरू किया। इतना ही नहीं ज्योतिराव फुले के साथ मिलकर उन्होंने ऐसी विधवाओं के लिए सुरक्षित एक घर बनाया जिन्हें उनके परिवार वालों ने घर से बेदखल कर दिया था और उनके साथ यौन शोषण भी किया जाता था।
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उनके पहले स्कूल में अलग-अलग जातियों की केवल 8 लड़कियां पढ़ने आती थीं। उस समय लड़कियों का भविष्य बनाना, उन्हें पढ़ाना किसी पाप से कम नहीं समझा जाता था।
सावित्रीबाई फुले को कई बार तो स्कूल जाते समय कई रूढ़िवादी लोगों के ताने सुनने पड़ते थे, उन्हें लोग पत्थर मारते थे, उनपर मिट्टी फेंकते थे, सड़ी गली सब्जियां फेंकते थे, कई बार उन पर गोबर भी फेंका गया था, लेकिन वो कभी अपने पथ से नहीं हिलीं।
उन्होंने 1848 में लड़कियों के लिए पहला स्कूल बनाया और उसी बड़ी उम्र की महिलाओं को पढ़ाने का भी जिम्मा उठाया। उनकी शिक्षा सिर्फ शाब्दिक तौर पर ही सीमित नहीं थी बल्कि वो महिलाओं के पूरे विकास पर ध्यान देती थीं।
उनके स्कूल में 1849-50 के बीच पढ़ने वाली लड़कियों की संख्या 25 से 70 हो गई थी और उन्होंने 1851 तक तीन स्कूल खोल लिए जिसमें 150 लड़कियां पढ़ती थीं। लड़कियों को स्कूल छोड़ने से रोकने के लिए सावित्रीबाई उन्हें भत्ता भी दिया करती थीं।