
जिस उम्र में बुर्जुग चलने फिरने की हालत में नहीं होते हैं। उस उम्र में भगवानी देवी ने देश का नाम रौशन किया है। 95 साल की उम्र में, भगवानी देवी ने साबित कर दिया कि उम्र सिर्फ एक संख्या है। फिनलैंड में हुए वर्ल्ड मास्टर एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में उन्होंने तीन पदक जीते हैं। 100 मीटर दौड़ में 24.74 सेकंड में गोल्ड मेडल, शॉट पुट और डिस्कस थ्रो में दो ब्रॉन्ज मेडल जीते। इन तीनों ही प्रतियोगिता में भगवानी देवी का कोई भी मुकाबला नहीं कर पाया। उन्हें प्यार से ‘गोल्डन दादी’ कहा जाता है और उनके कुल 15 पदक हैं, जिसमें राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताएं शामिल हैं।
हरियाणा की हैं गोल्डन दादी

भगवानी देवी हरियाणा के खेकड़ा जिले की रहने वाली हैं। बताया जाता है कि जब वह सिर्फ 12 साल की थी तो उनकी शादी कर दी गई। 30 साल की उम्र में उनके पति का निधन हो गया। पति की मृत्यु के बाद भगवानी देवी ने अपना पूरा ध्यान बच्चों के पालन पोषण में लगा दिया। हालांकि मुश्किलें उनका पीछा छोड़ने का नाम नहीं ले रहीं थी। उनकी बेटी जब चार साल की हुई तो उसकी भी आकस्मिक मौत हो गई। बेटी की मौत से वह टूट गई लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। अपने दूसरे बच्चे के साथ उन्होंने खुद को संभाला। इस बीच उन्हें दिल्ली नगर निगम में नौकरी मिल गई, जिसके बाद से धीरे-धीरे उनका जीवन पटरी पर आया।
गोल्डन दादी की तीन पोते-पोतियां

जिस उम्र में बुर्जुग चलने फिरने की हालत में नहीं होते हैं। उस उम्र में भगवानी देवी ने देश का नाम रौशन किया है। भगवानी देवी तीन बच्चों की दादी है। भगवानी देवी के सबसे बड़े पोते का नाम विकास डागर है। विकास भी स्पोर्ट्स से जुड़े हुए हैं। पारा एथलेटिक्स में कई मेडल जीत चुके विकास को खेल रत्न अवार्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है। पोते की तरह भगवानी देवी को भी खेल में बहुत रुचि रही जिसके कारण उन्होंने 95 साल की उम्र में वर्ल्ड मास्टर्स एथलेटिक्स में हिस्सा लिया और देश को मेडल दिलाया।