
हमारे देश में संस्कृति और सभ्यता का बहुत अधिक महत्त्व है। यहां हर मोहल्ले के हर घर में अलग-अलग तरह के रिवाज़ होते हैं। यहां कदम-कदम पर नियम और कायदे बदल जाते हैं, लेकिन अगर आपने गौर किया हो, तो हर रीति-रिवाज में महिलाओं का एक अहम योगदान होता है। सारे रिवाज तभी होते हैं जब महिलाएं इकट्ठा होती हैं। पर क्या कभी आपने सोचने की कोशिश की है, कि इनमें बहुत से ऐसे भी रिवाज हैं जिन्हें हम बोझ की तरह निभाए जा रहे हैं जिनकी आड़ में सदियों से महिलाओं के साथ भेदभाव भी होता आ रहा है। आइए जानते हैं ऐसे ही कुछ रिवाजों के बारे में,
फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन

बोहरा मुस्लिम समुदाय में होने वाला फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन सही मायने में एक पिछड़ा हुआ रिवाज है जिसका देश से ही नहीं बल्कि दुनिया से हट जाना ही सही होता है। जेनिटल म्यूटिलेशन का मतलब है लड़कियों के जननांगों को क्षतिग्रस्त करना। इसके लिए ब्लेड, चाकू, कैंची किसी भी धारदार चीज का इस्तेमाल किया जा सकता है।
महिलाओं के लिए उपवास

हमारे देश में महिलाओं को ही सभी उपवास क्यों रखना पड़ता है। करवा चौथ से लेकर तीज तक और अहोई अष्टमी से लेकर सावन तक लगभग हर महीने में कोई ना कोई उपवास आ जाता है, लेकिन हर उपवास महिलाओं को ही क्यों मनाना पड़ता है। हर बार वही क्यों भूखी रहें? पत्नी के उपवास रखने के कई रिवाज हैं, लेकिन पतियों के लिए ऐसा कुछ भी नहीं।
विधवाओं का समाज में बहिष्कार

क्या आप वृंदावन की विधवाओं के बारे में जानते हैं? यहां आश्रम में कई ऐसी महिलाएं रह रही हैं जिन्होंने समय से पहले अपने पतियों को खो दिया और जिस वजह से समाज ने उनका बहिष्कार कर दिया। अब तो यह रिवाज पुराना हो गया है, लेकिन अब भी ऐसे कई रिवाज हैं जो महिलाओं के साथ निभाए जाते हैं। जो उसकी मानसिक स्थिति पर बहुत गहरा असर डालते हैं।
पीरियड्स में भेदभाव

आज भी महिलाओं को पीरियड्स के समय बहुत सी चीजें करने से मना कर दिया जाता है। उनके खाने-पीने की बात तो छोड़िए उन्हें सोने तक के लिए भी घर से अलग किसी और जगह जाना पड़ता है। इस तरह के रिवाजों से किसका भला हो रहा है यह तो नहीं पता, लेकिन इससे नुकसान कितने लोगों का हो रहा है वह तो समझ आता है। आखिर यह कहां का शुद्धिकरण है।