हरियाली तीज केवल एक पर्व नहीं, बल्कि प्रेम, समर्पण और नारी शक्ति की पहचान है। जब सावन की हरियाली धरती को सजाने लगती है, तो महिलाएं झूले, गीत और श्रृंगार के साथ इस पावन दिन को विशेष बना देती हैं। पर इसके पीछे छिपी जो पौराणिक कथा है, वह न केवल धार्मिक महत्व रखती है बल्कि हर स्त्री के आत्मबल और धैर्य की मिसाल भी है।
जब पार्वती ने किया 108 जन्मों तक तप
कहानी शुरू होती है माता पार्वती से, जिन्होंने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तप किया। कहा जाता है कि उन्होंने 107 बार जन्म लिया, लेकिन हर बार किसी न किसी कारण से उनका विवाह शिव से नहीं हो पाया। पर वे हार नहीं मानी। अंततः 108वें जन्म में, हिमवान की पुत्री के रूप में जन्मी पार्वती ने फिर कठोर तपस्या शुरू की। जंगल में एक गुफा में रहकर उन्होंने केवल सूखे पत्ते खाकर तप किया।
शिव की परीक्षा और पार्वती का अडिग प्रेम
शिवजी, जो समाधि में लीन थे, उन्होंने पार्वती की तपस्या को देखा, पर वे उनकी परीक्षा लेना चाहते थे। एक साधु के रूप में जाकर उन्होंने पार्वती को शिव के कठोर स्वभाव और सन्यास की ओर झुकाव के बारे में बताया। लेकिन पार्वती अडिग रहीं। उन्होंने कहा – “मैं शिव को उनके रूप, वैभव या सौंदर्य के लिए नहीं, उनके आत्मस्वरूप के लिए चाहती हूँ। उनका त्याग ही मेरे लिए सबसे बड़ा आकर्षण है।”
जब सच्चा प्रेम विजयी हुआ
पार्वती की तपस्या, प्रेम और समर्पण ने शिव को अंततः प्रसन्न कर दिया। उन्होंने पार्वती को पत्नी रूप में स्वीकार किया। इसी दिन को हरियाली तीज के रूप में मनाया जाता है – जब शिव और पार्वती का पुनर्मिलन हुआ।
व्रत का महत्व
हरियाली तीज के दिन महिलाएं शिव-पार्वती की पूजा करती हैं और निर्जला व्रत रखती हैं। वे यही कामना करती हैं कि उन्हें वैसा ही अटूट प्रेम और जीवनसाथी मिले, जैसा माता पार्वती को भगवान शिव का मिला। विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सौभाग्य के लिए यह व्रत करती हैं, जबकि अविवाहित कन्याएं अच्छे वर की प्राप्ति की प्रार्थना करती हैं।
हरियाली तीज का उत्सव: गीत, झूले और श्रृंगार
इस दिन महिलाएं पारंपरिक हरे रंग के वस्त्र पहनती हैं, हाथों में मेहंदी रचाती हैं, लोक गीत गाती हैं और झूला झूलती हैं। यह दिन न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि स्त्री जीवन की सुंदरता, उल्लास और आस्था का भी प्रतीक बन गया है।
निष्कर्ष
हरियाली तीज हमें यह सिखाती है कि सच्चा प्रेम कभी हारता नहीं। अगर संकल्प पवित्र हो और इरादे मजबूत, तो समय चाहे जितना भी लगे – ब्रह्मांड भी आपको उस प्रेम से मिलवा देता है, जिसकी आप सच्चे दिल से चाह रखते हैं।