गर्मियों में गूलर के पेड़ के गोल, हरे और लाल रंग के फल लोगों को खूब आकर्षित करते हैं। जब आप उन्हें खाने की कोशिश करते हैं, तो आपको अंदर छोटे-छोटे कीड़े मिल जाएंगे। फल तोड़ने के बाद और भी कई कीट निकलेंगे। इसलिए अंततः लोग इन फलों को फेंक देते हैं। आप सोचने लगते हैं कि फल तो पूरा बंद था और इसमें कोई छेद भी नहीं था तो ये कीड़े अन्दर गए कैसे गए…आज हम आपको इसी सवाल का जवाब बताएंगे। हम आपको बताएंगे कि गूलर के पेड़ के फल में कीड़े क्यों पाए जाते हैं और इसके पौराणिक कारण क्या हैं।

हिरण्यकश्यप एक बहुत ही दुष्ट राजा था जिसने धर्म को मानने वाले लोगों को सताया था। उसे ईश्वर से विशेष सुरक्षा प्राप्त थी कि कोई अन्य देवता,मनुष्य,पशु-पक्षी चाहे दिन हो या रात हो.. उसे हानि नहीं पहुँचा सकता था। इस वरदान के कारण वो खुद को ईश्वर समझने लगा था और उसके अंदर का अहंकार दिनों-दिन बढ़ता जा रहा था। वह अपनी प्रजा से खुद की पूजा करवाने लगा था।
हिरण्यकश्यप एक ऐसा शासक था जो अपनी प्रजा के प्रति बहुत कठोर और निर्दयी था। देवता और अन्य प्राणी भी उससे डरते थे। वह धर्म के मार्ग पर चलने वाले लोगों के जीवन को और भी कठिन बना रहा था और उसका शासन दिन-ब-दिन बद से बदतर होता जा रहा था। सभी लोग और देवतागण उसके डर से कांपते थे जिसके थककर सभी नारायण की शरण में गए।
भगवान नारायण ने देवताओं की स्तुति सुनकर देवताओं को हिरण्यकश्यप के वध का वचन दिया। जिसके बाद भगवान नारायण ने अपने एक भक्त को हिरण्यकश्यप के पुत्र के रूप में धरती पर भेज दिया जिसका नाम प्रह्लाद था जो भगवान विष्णु का परम भक्त निकला।

हिरण्यकश्यप प्रह्लाद से नाराज रहता था क्योंकि प्रह्लाद हमेशा भगवान विष्णु की स्तुति और पूजा करता रहता था। हिरण्यकश्यप चाहता था कि प्रह्लाद उसे ही भगवान मानकर उसकी पूजा करे, लेकिन प्रह्लाद ने मना कर दिया था कि वह ऐसा नहीं कर सकता। जिसकी वजह से हिरण्यकश्यप प्रहलाद से नाराज हो गया और उसे कई बार प्रताड़ित किया लेकिन नारायण की कृपा से प्रह्लाद हमेशा बचता रहा। अंत में हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद से कहा कि अगर उसने भगवान विष्णु की पूजा करना बंद नहीं किया तो वह उसे मौत के घाट उतार देगा।
ये बात सुनकर प्रहलाद ने कहा कि पिताजी मैं उस नारायण की पूजा करता हूं जो तीनो लोको, सृष्टि के कण-कण में, पेड़-पौधे, इंसान, जीव जंतु में वास करते हैं और इस पूरे ब्रहमांड के स्वामी है श्रृष्टि के रचयिता हैं।
नारायण ही परमपिता परमेश्वर हैं जो अपनी शक्ति से संपूर्ण सृष्टि की रचना, पालन एवं संघार करते हैं। अगर आप भी अपने मन को परमेश्वर में लीन कर देगें तो आपके जीवन का भी उद्धार हो जाएगा।

यह सुनकर हिरण्यकश्यप गुस्से से तिलमिला उठा और उसने प्रहलाद से कहा कि, अरे मूर्ख, अगर तेरा भगवान हर जगह है, तो तेरा भगवान इस खंभे में भी होगा। तब प्रह्लाद ने कहा हां पिता जी। तब हिरण्यकश्यप ने अपनी गदा से खंभे पर प्रहार किया, और भगवान नरसिंह जोकि आधा सिंह, आधा मानव थे वहां से निकले। भगवान नरसिंह ने हिरण्यकश्यप को अपनी जांघ पर लिटा दिया और अपने नाखूनों से उसका पेट चीर डाला, जिससे वह तुरंत मर गया। हिरण्यकश्यप की मृत्यु से इस दुनिया की बुराई का अंत हुआ।
जब भगवान नरसिंह ने हिरण्यकश्यप का वध किया, तो उस पापी का रक्त भगवान नरसिंह के हाथों और नाखूनों पर लग गया। जिसकी वजह से उन्हें तीव्र दर्द और जलन होने लगी, तब भगवान नरसिंह ने असुर राज के खून से लथपथ नाखूनों को वहां मौजूद गूलर के पेड़ के अंदर दबा कर दर्द को ठीक किया। इस क्रम के बाद नरसिंह देवता का दर्द तो कम हुआ लेकिन लेकिन पापी का खून गूलर के वृक्ष से स्पर्श करते ही पेड़ के फलों में कीड़े उत्पन्न होने शुरू हो गए।
मान्यता है कि तभी से ही गूलर के फलों में कीड़े पाए जाते हैं।
दवाई के रूप में इसका सेवन किया जाता है
गूलर के फलों के सूखे छिलके को पीसकर इसमें बराबर भाग में मिश्री मिलाकर, इसका गाय के दूध के साथ सेवन करने से डायबिटीज में फायदा मिलता है।
गूलर के पत्तों को पीसकर शहद के साथ चाटने से पित्त दोष दूर होता है।
गूलर के फल को खाने से पेशाब की समस्या ठीक हो जाती है
गूलर के फल को खाने से पेट का दर्द और गैस की समस्या ठीक होती है।
गूलर के दूध को बतासे के साथ खाने से दस्त में लाभ मिलता है।