होली का त्यौहार पूरे देश में बहुत ही हर्षो उल्लास से मनाया जाता है. होली का नाम सुनते ही लोगों का मन ख़ुशी और रंगों से भर जाता है. इस रंगों के त्यौहार को मनाने से एक दिन पूर्व होलिका दहन किया जाता है. दरअसल होलिका दहन से जुड़ी एक कहानी काफी प्रचलित है जिसके अनुसार हिरण्यकश्यप की बहन होलिका ने भाई के साथ मिलकर प्रहलाद को मारने की कोशिश की थी लेकिन प्रहलाद के बदले होलिका ही आग में जलकर मर गई. होली का त्यौहार इसी पौराणिक कथा के आधार पर मनाया जाता है, लेकिन सवाल यह है कि पूरी दुनिया में होलिका को एक राक्षसी के रूप में माना जाता है तो आखिर दहन से पहले उसका पूजन क्यों किया जाता है।
इस कारण की जाती है होलिका की पूजा –
होलिका दहन को लेकर एक लौकिक कथा प्रचलित है जिसके अनुसार होलिका दहन से पहले उसकी पूजा की जाती है. माना जाता है कि होलिका असल मे एक देवी थी जो ऋषि के द्वारा दिए गए श्राप के कारण राक्षसी बन गई थी. अपने भतीजे प्रहलाद के साथ आग में बैठने के बाद उसकी मृत्यु हो गई और आग में जलने के कारण वह शुद्ध भी हो गई.यही कारण है कि होलिका को राक्षसी होने के बाद होलिका दहन के दिन एक देवी के रूप में पूजा जाता है।
होलिका दहन की पूजा विधिहोलिका दहन की पूजा विधि
होलिका दहन की पूजा के लिए सबसे पहले होलिका के पास जाकर पूर्व दिशा में मुख करके बैठना चाहिए। इसके बाद पूजन सामग्री जिसमें कि जल, रोली, अक्षत, फूल, कच्चा सूत, गुड़, हल्दी साबुत, मूंग, गुलाल और बताशे साथ ही नई फसल यानी कि गेहूं और चने की पकी बालियां ले लें। इसके बाद होलिका के पास ही गाय के गोबर से बनी ढाल रखे। साथ ही गुलाल में रंगी, मौली, ढाल और खिलौने से बनी चार अलग-अलग मालाएं रख लें। इसमें पहली माला पितरों के लिए, दूसरी पवनसुत हनुमान जी के लिए, तीसरी मां शीतला और चौथी माला परिवार के नाम से रखी जाती है। इसके बाद होलिका के की परिक्रमा करते हुए उसमें कच्चा सूत लपेट दें। कच्चे सूत को होलिका के चारों ओर तीन या सात परिक्रमा करते हुए लपेटना चाहिए। फिर लोटे का शुद्ध जल और पूजन की अन्य सभी वस्तुओं को प्रसन्नचित्त होकर एक-एक करके होलिका को समर्पित करें। रोली, अक्षत व फूल आदि को भी पूजन में लगातार प्रयोग करें फिर अन्य पूजन सामग्री चढ़ाकर होलिका में अनाज की बालियां डाल दें। गंध-पुष्प का प्रयोग करते हुए पंचोपचार विधि से होलिका का पूजन किया जाता है।