हिन्दू धर्म में पुराणों और मान्यताओं से जुड़ी कई कहानियां हम बचपन से सुनते आ रहे हैं। इन्हीं में से एक कहानी है सुदर्शन चक्र की। सुदर्शन चक्र एक शक्तिशाली हथियार था जो अपने लक्ष्य का पीछा कर सकता था और मार सकता था। अपने लक्ष्य को पूरा किए बिना वो कभी वापस नहीं लौटता था। मान्यताओं के अनुसार भोलेनाथ ने इसकी रचना की थी लेकिन ये अस्त्र आपने भगवान विष्णु के हाथों में देखा होगा आइए जानते हैं कि भगवान विष्णु तक ये चक्र कैसे पहुंचा।

पुराणों के अनुसार भगवान भोलेनाथ और भगवान नारायण एक दूसरे को अपने इष्टदेव की तरह पूजते हैं। दोनों समय-समय पर एक दूसरे के कभी इष्टदेव और कभी भक्त बन जाते हैं। एक बार भगवान विष्णु को यह ख्याल आया कि क्यों न अपने इष्टदेवता भोलेनाथ को खुश किया जाए। भोलेनाथ को खुश करने के लिए विष्णु जी ने 1000 कमल पुष्प चढाने का विचार बनाया। इसके बाद भगवान विष्णु ने पूजा का सभी सामान एकत्रित कर लिया और पूजा आसन ग्रहण किया। इसके बाद उन्होंने संकल्प लेकर अनुष्ठान आरंभ किया।
इस पूजा में विष्णु जी भक्त और शिव जी भगवान की भूमिका में थे। ये देखकर भगवान शिव को एक ठिठोली सुझी और उन्होंने चुपचाप हजार कमलों में से एक कमल चुरा लिया। भगवान विष्णु इस बात से अज्ञान थे क्योंकि वो तो अपने प्रभु की पूजा में पूरी तरह से लीन थे। पूजा में मग्नविष्णु जी ने 999 कमल पुष्प शिव जी को अर्पित किया। जब वो आखिरी कमल पुष्प यानी एक हजारवां पुष्प अर्पित करना चाह रहे थे, तो थाल में कोई पुष्प नहीं था।

भगवान विष्णु को लगा कि ऐसे तो पूजा अधूरी मानी जाएगी। पुष्प के लिए न वे स्वयं जा सकते और न ही किसी से पुष्प लाने को कह सकते थे। शास्त्रों के मुताबिक, पूजा में एक बार बैठने पर पूजा के संपूर्ण होने तक उठा नहीं जाता है।
भगवान विष्णु अगर चाहते तो अपनी शक्ति से पुष्पों का अंबार लगा सकते थे परंतु उस समय वे भगवान नहीं, बल्कि भक्त के रूप में वहां पूजा कर रहे थे, इसीलिए वो अपनी शक्ति का उपयोग पूजा में नहीं कर सकते थे। तभी भगवान विष्णु के मन में ख्याल आया कि लोग मुझे कमल नयन बुलाते हैं और फिर क्या था उन्होंने अपनी एक आंख निकालकर शिव जी को अर्पित कर दिया।
भगवान विष्णु का ये समर्पण देखकर शिव जी भावविभोर हो गए और उनके नेत्रों से आंसू निकल पड़े। इस समर्पण भाव से शिव केवल मन से ही नहीं, बल्कि तन से भी पिघल गए, जो चक्र के रूप में परिणित होकर सुदर्शन चक्र बन गये। इसी चक्र को भगवान नारायण हमेशा अपने दाहिने हाथ की तर्जनी में धारण करते हैं। इस तरह विष्णु भगवान और भोलेनाथ सदैव एक दूसरे के साथ रहते हैं।