इस पारंपरिक सुजनी कला को आगे बढ़ाकर आत्मनिर्भर बन रहीं हैं ग्रामीण महिलाएं !

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सुई और धागे का रिश्ता बड़ा ही अलबेला होता है। जहां एक तरफ सुई सख्त होती है वहीं धागा बेहद ही मुलायम होता है, मगर जब दोनों मिलते हैं, तो अद्भुत परिणाम सामने आते हैं। बिहार की सुजनी एम्ब्रॉयडरी भी इसी का एक खूबसूरत परिणाम है। वैसे तो बिहार में आपको एक से बढ़कर एक रंग-बिरंगी लोक कलाएं एवं हस्तशिल्प कलाएं देखने को मिलेंगी। मगर इन सब में सुजनी सबसे अनोखी कला है।

सूजनी कला को समझना बेहद ही आसान है। इसमें रनिंग स्टिच, बैक स्टिच और चेन स्टिच का पूरा कमाल होता है। यह कला बंगाल की ‘कांथा’ कढ़ाई से भी थोड़ा बहुत मिलती है।

कैसी होती हैं सुजनी कला ?

सुजनी कला देखने में बहुत ही सिंपल और सोबर होती है, और इसमें गांव, घर, त्योहार और प्राकृतिक चित्र बनाएं जाते हैं। इसकी छपाई भी महिलाएं घर पर ही करती हैं। इस कढ़ाई में ज्यादातर  सिंपल कलर के धागे और शेडेड धागों का प्रयोग किया जाता है। इनसे रनिंग, बैक और चेन स्टिच करी जाती है। अब तो साड़ी, सलवार सूट और दुपट्टे पर भी इस तरह की एंब्रॉयडरी की जा रही है।

फैशन इंडस्ट्री में सूजनी कला

बात करें फैशन इंडस्ट्री की, तो सुजनी कला को फैशन इंडस्ट्री में  काफी महत्व दिया जा रहा है। इस एम्ब्रॉयडरी को पारंपरिक रूप से यह जैसी दिखती है, वैसे उतना प्यार नहीं मिला है। हालांकि, रेशम के धागों से जब इस एम्ब्रॉयडरी को किया जाता है, तब यह बहुत ही ज्यादा खूबसूरत दिखती है। मगर इसमें अब भरवा एंब्रॉयडरी और अन्य कई तरह से  बदलाव किये जा रहे हैं, तो लोगों यह पसंद आ रही हैं।

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