
डिजिटल युग में हर एक के पास पर्सनल फ़ोन है बात करे बच्चो की तो उनका आधा समय स्क्रीन पर ही गुजरात है ऐसे में बच्चो को मानसिक और शारीरिक रूप से असर पड़ता है अब वो जमाना नहीं रहा, जब बच्चे पार्क में जाकर अपने दोस्तों के साथ तरह-तरह के खेल खेला करते थे. भागदौड़ करते थे, . सारा दिन घर में बैठे रहने से थोड़ा सा ही दौड़ने-भागने में बच्चे थक जाते हैं. ऐसे में पैरेंट्स को बच्चों के स्क्रीन टाइम को कम करने के बारे में सोचना चाहिए. उन्हें बाहर खेलने जाने के लिए मोटिवेट करना चाहिए. कुछ बातों को ध्यान में रखकर आप अपने बच्चों का स्क्रीन टाइम कम कर सकते हैं.
बच्चों के सामने कम करें मोबाइल यूज
बच्चे वही करते हैं या सीखते हैं, जो माता-पिता करते हैं. यदि आप खुद सारा दिन मोबाइल लेकर बैठे रहेंगे तो बच्चे की भी ख्वाहिश होगी कि उसे मोबाइल चलाने को मिले. ऐसे में आप मोबाइल का इस्तेमाल तब अधिक करें, जब बच्चा घर पर ना हो. बच्चे जब पढ़ाई कर रहे हों तो
खाते समय बच्चों को फोन या टीवी न देखने दें
खाते समय किसी डिस्ट्रैक्शन की जरूरत नहीं होती है। इसलिए इस समय उन्हें फोन, टैब आदि का इस्तेमाल न करने दें। कोशिश करें कि आप उनके साथ बैठकर खाना खाएं या बात-चीत करें, जिससे वे बोर न हो और मन बहलाने के लिए फोन का इस्तेमाल न करने लगें।
समय करें तय
बच्चे कितनी देर मोबाइल पर समय बिताएंगे ये आपको ही तय करना होगा. ऐसा बिल्कुल ना हो कि स्कूल से आने के बाद बच्चा 4 घंटे मोबाइल में ही लगा हुआ है. इससे पढ़ाई पर तो नेगेटिव असर पड़ेगा ही, इससे उसकी आंखों की रोशनी भी कमजोर हो सकती हैं. प्रतिदिन आप अपने 10 साल से कम उम्र के बच्चे को 1 से 2 घंटे से अधिक गैजेट्स का इस्तेमाल ना करने दें. टीन एज बच्चों के साथ भी स्क्रीन टाइम फिक्स करें.

बच्चों को दें स्क्रीन का अल्टरनेटिव
अगर आप बच्चों को स्क्रीन से दूर रखना चाहते हैं, तो उनका ध्यान किसी अन्य गतिविधियों में लगाने की कोशिश करें। इसके लिए आप बच्चों को वॉक या रनिंग पर ले जा सकते हैं या फिर उनके साथ कुछ इंडोर या आउटडोर गेम्स खेल सकते हैं।
उनके बेड रूम से फोन, टैबलेट, लैपटॉप आदि को बाहर रखें। उनके सोने के कमरे में इन चीजों को रखने से उनका ध्यान बार-बार इस ओर आकर्षित होगा। साथ ही, इस बात का भी ध्यान रखें कि उनके सोने से एक घंटा पहले उन्हें फोन आदि न चलाने दें।