
भारत में कई साधु-संत हुए , खासकर देवभूमि उत्तराखंड का गंगा तट तो साधु-संत और साधकों की साधना , त्याग, तपस्या और भक्ति का साक्षी है। आज हम जानेंगे ऐसी ही सिद्ध साधिका आनंदमयी मां के बारे में ,

श्री आनंदमयी माँ एक हिंदू आध्यात्मिक गुरु और २०वीं सदी की एक उल्लेखनीय रहस्यवादी थीं, जिनका जन्म वर्तमान बांग्लादेश में हुआ था। ढाका में उन्हें ‘मानुष काली’ या ‘जीवित काली’ के नाम से भी जाना जाता था। उनका आदर्श वाक्य है कि जीवन और धर्म एक हैं। अपने जीवन को चलाने के हमारे प्रयास, चाहे वह काम पर हों या घर पर, अत्यंत ईमानदारी, प्रेम और समर्पण के साथ किए जाने चाहिए।

आनंदमयी मां ने अपने जीवनकाल में कई यात्राएं कीं और हमेशा सत्य का प्रचार किया। उन्होंने भारत के अधिकांश हिस्सों में यात्रा की। लेकिन उन्होंने न कभी आध्यात्मिक समूह बनाने का प्रयास किया और ना ही कभी आध्यात्मिक प्रवचन दिए। लेकिन लोगों के प्रश्नों का जवाब उन्होंने जरूर दिया। देशभर से असंख्य लोगों में प्रेम, भक्ति और करुणा का संदेश बांटते हुए मां आनंदमयी ने २७ अगस्त सन १९८२ को देहरादून, उत्तराखंड में अपनी देहलीला पूर्ण की।

उनके देहावसान के दो दिन बाद उन्हें कनखल, हरिद्वार स्थित उनके आश्रम में महासमाधि दी गयी। उनकी महासमाधि के बाद देश के सभी संप्रदायों के संतों ने उन्हें आधुनिक काल की सबसे महान संत का सम्मान दिया था। भारत के प्रत्येक मत–पंथ–संप्रदाय ने उनकी जीवन में इस्तेमाल की गई वस्तुओं को अपने मठो में स्थापित करवाया था। शारीरिक रूप में वे भले ही नहीं है, लेकिन आज भी उनकी समाधि पर जाकर भक्तों को उनकी जीवंत उपस्थिति का अनुभव होता है। बता दें कि आनंदमयी मां के उत्तराखंड में ७ और देशभर में २१ आश्रम हैं।
