भारत की पहली महिला मुख्यमंत्री: सुचेता कृपलानी की प्रेरणादायक कहानी

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आज जब हम महिला सशक्तिकरण की बातें करते हैं, तो हमें उन महान महिलाओं को जरूर याद करना चाहिए जिन्होंने कई दशक पहले ही समाज की रूढ़ियों और बंदिशों को तोड़कर इतिहास रच दिया। ऐसी ही एक प्रेरणादायक नाम हैं सुचेता कृपलानी, जिनका आज जन्मदिन है। सुचेता कृपलानी सिर्फ उत्तर प्रदेश की ही नहीं बल्कि पूरे देश की पहली महिला मुख्यमंत्री बनी थीं। आज के दिन उन्हें याद करना और उनके संघर्षों को सलाम करना हमारा कर्तव्य है। उनका पूरा जीवन संघर्ष, मेहनत और हिम्मत की मिसाल रहा है। उन्होंने उस दौर में वो कर दिखाया जब राजनीति पूरी तरह पुरुष प्रधान मानी जाती थी।

सुचेता कृपलानी का जन्म हरियाणा के अंबाला में 25 जून 1908 को हुआ था। पढ़ाई के लिए वह दिल्ली आईं और इंद्रप्रस्थ कॉलेज से अपनी शिक्षा पूरी की। इसके बाद उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) में प्रोफेसर के तौर पर काम करना शुरू किया।

परिवार की जिम्मेदारियां कम उम्र में ही उनके कंधों पर आ गई थीं। 1929 में जब उनके पिता और बहन का निधन हुआ, तो घर चलाने की पूरी जिम्मेदारी सुचेता पर आ गई। ऐसे में उन्होंने पढ़ाई के साथ-साथ परिवार को संभालने के लिए नौकरी की।

सुचेता कृपलानी बचपन से ही आजादी के आंदोलन से प्रभावित थीं। जलियांवाला बाग हत्याकांड ने उनके मन में अंग्रेजों के प्रति गुस्सा और देशभक्ति की भावना को और मजबूत किया। उस समय वह केवल 10 साल की थीं, लेकिन उनके मन में आजादी की ज्वाला तब ही जल उठी थी।

बनारस में पढ़ाते हुए ही उनकी मुलाकात आचार्य जे.बी. कृपलानी से हुई। वे दोनों भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय थे। धीरे-धीरे दोनों के विचार मिलते गए और उन्होंने शादी करने का फैसला किया। हालांकि, दोनों के बीच उम्र का फर्क करीब 20 साल था। इस रिश्ते को लेकर समाज में कई सवाल उठे। खुद महात्मा गांधी ने भी पहले इस शादी पर आपत्ति जताई। लेकिन सुचेता ने अपने तर्कों और आत्मविश्वास से सबको मना लिया। आखिरकार, दोनों की शादी हो गई और दोनों ने मिलकर स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया।

आजादी के बाद सुचेता कृपलानी ने कांग्रेस पार्टी के साथ राजनीतिक जीवन की शुरुआत की। उन्होंने 1940 में कांग्रेस की महिला शाखा की स्थापना की। 1947 में जब भारत आजाद हुआ, तो उन्होंने संविधान सभा की सदस्यता भी संभाली।

स्वतंत्रता की घोषणा के समय जब पंडित नेहरू ने संसद में ‘ट्रिस्ट विद डेस्टिनी’ भाषण दिया, तो सुचेता कृपलानी ने वहां मौजूद लोगों के सामने वंदे मातरम्, ‘सारे जहां से अच्छा’ और राष्ट्रगान गाकर माहौल को भावुक बना दिया।

1960 के दशक की बात है। उत्तर प्रदेश की राजनीति में उस वक्त भारी उथल-पुथल थी। कांग्रेस पार्टी में गुटबाजी चरम पर थी। चंद्रभानु गुप्ता और कमलापति त्रिपाठी जैसे बड़े नेताओं के बीच खींचतान चल रही थी।

1963 में जब कांग्रेस के भीतर ‘कामराज योजना’ लागू हुई, तो कई मुख्यमंत्रियों के इस्तीफे लिए गए। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री सीबी गुप्ता ने भी इस्तीफा दे दिया। ऐसे में नए मुख्यमंत्री की तलाश शुरू हुई। नेहरू जी और कांग्रेस नेतृत्व ने सुचेता कृपलानी पर भरोसा जताया।

इस तरह उत्तर प्रदेश और देश को पहली बार महिला मुख्यमंत्री मिलीं। यह एक ऐतिहासिक क्षण था।

उनकी छवि कभी ‘रबर स्टांप’ या ‘रिमोट कंट्रोल सीएम’ वाली नहीं रही। उन्होंने अपने फैसले खुद लिए और अपनी नेतृत्व क्षमता का लोहा मनवाया।

राजनीतिक मतभेद के बावजूद सुचेता और उनके पति जेबी कृपलानी के रिश्ते हमेशा मजबूत रहे। जहां जेबी कृपलानी विपक्षी दल में सक्रिय रहे, वहीं सुचेता कांग्रेस में काम करती रहीं।

1971 में उन्होंने राजनीति से संन्यास ले लिया। इसके कुछ साल बाद, 1974 में उनका निधन हो गया।

आज जब हम महिला सशक्तिकरण की बातें करते हैं तो सुचेता कृपलानी का नाम गर्व से लिया जाता है। उन्होंने साबित किया कि अगर इरादे मजबूत हों तो कोई भी चुनौती बड़ी नहीं होती।

उनकी कहानी आज भी हर उस लड़की और महिला के लिए प्रेरणा है जो राजनीति, समाज सेवा या किसी भी क्षेत्र में आगे बढ़ना चाहती है।

सुचेता कृपलानी ने जिस साहस और आत्मविश्वास के साथ पुरुष प्रधान राजनीति में अपनी जगह बनाई, वह भारतीय राजनीति के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है।

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