मोटापा और मेटाबॉलिक सिंड्रोम बढ़ा सकते हैं Breast Cancer से मृत्यु का खतरा !

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Research से पता चला है कि हार्ट डिजीज, टाइप 2 डायबिटीज और स्ट्रोक के खतरे को बढ़ाने वाला मेटाबोलिक सिंड्रोम ब्रेस्ट कैंसर से पीड़ित महिलाओं में मृत्यु दर के जोखिम को बढ़ा सकता है। मोटापा, हाई ब्लड प्रेशर, शुगर और बैड कोलेस्ट्रॉल जैसी समस्याओं को मिलाकर मेटाबॉलिक सिंड्रोम का स्कोर जितना ज्यादा होगा, ब्रेस्ट कैंसर से पीड़ित महिलाओं में मृत्यु का खतरा उतना ही बढ़ जाता है। ऐसे कैंसर का इलाज आम तौर पर मुश्किल होता है। इससे आइये जानते हैं किन वजह से होता है ब्रेस्ट कैंसर,
इस वजह से बढ़ता है खतरा


शोधकर्ताओं ने पाया कि मोटापे की परवाह किए बिना हाई मेटाबॉलिक स्कोर (3-4) से खराब फॉरकास्ट वाले एस्ट्रोजन रिसेप्टर (ईआर) पॉजिटिव, प्रोजेस्टेरोन रिसेप्टर (पीआर) नेगेटिव ब्रेस्ट कैंसर का खतरा बढ़ जाता है और ब्रेस्ट कैंसर से मृत्यु दर का 44 प्रतिशत ज्यादा जोखिम होता है।
ब्रेस्ट कैंसर के लक्षण

ब्रेस्ट कैंसर का पहला लक्षण महिलाओं के स्तन में दर्द रहित एक गांठ होना है। यह ब्रेस्ट कैंसर का सबसे आम लक्षण है, जिस पर महिलाओं का कभी ध्यान नहीं जाता।
निप्पल का बाहर की जगह ब्रेस्ट के अंदर धस जाना और उस पर दाद या रैशेज होना।
ब्रेस्ट के आकार में बदलाव होना ब्रेस्ट कैंसर का लक्षण हैं। एक्सपर्ट्स के अनुसार, अगर एक हफ्ते के अंदर किसी महिला को ब्रेस्ट कैंसर डायगनोज होता है, तो उसकी जांचें पूरी हो जाती हैं।
ब्रेस्ट कैंसर का इलाज


ब्रेस्ट कैंसर में आमतौर पर कीमोथैरेपी, सर्जरी, सर्जरी, रेडियोथैरेपी, टारगेटेड थैरेपी, हार्मोनल थैरेपी , एंडोक्राइन थैरेपी, इम्यूनो थैरेपी से इलाज किया जाता है। डॉ जामरे कहती हैं कि सर्जरी करने का मतलब यह नहीं कि सभी ब्रेस्ट कैंसर के मरीज का ब्रेस्ट निकाल दिया जाएगा। अगर महिलाएं शुरूआती स्टेज में इस पर ध्यान दें , तो सही इलाज करके ब्रेस्ट बचाया भी जा सकता है।ब्रेस्ट कैंसर से कैसे बचें

100 परसेंट ब्रेस्ट कैंसर का बचाव करना असंभव है। लेकिन अपनी लाइफस्टाइल में बदलाव करके ब्रेस्ट कैंसर के खतरे को कम करने में मदद मिल सकती है। हर महिला को हफ्ते में 4 दिन तक 20-30 मिनट फिजिकल एक्सरसाइज करनी चाहिए। इसके साथ ही महिलाओं को अपने ब्रेस्ट की जांच खुद कैसे कर सकते हैं, यह सीखना चाहिए। ऐसा करने से अगर वह ब्रेस्ट में कुछ बदलाव महसूस करती है, तो उन्हें तुंरत डॉक्टर से इस बारे में बात करनी चाहिए।

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