नई दिल्ली। हर माता-पिता चाहते हैं कि उनका बच्चा खुशहाल माहौल में बड़ा हो, उसे सुरक्षा, प्यार और दुलार मिले। इसके लिए वे भरपूर कोशिश भी करते हैं। लेकिन अक्सर अनजाने में ही कुछ आदतें ऐसी बन जाती हैं, जो बच्चे के इमोशनल हेल्थ पर गहरा असर डालती हैं। एनएलपी मास्टर कोच श्वेता गांधी ने बताया कि पैरेंटिंग में 5 ऐसे ‘रेड फ्लैग्स’ होते हैं, जो दिखने में सामान्य लगते हैं, लेकिन बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकते हैं।
बच्चों के सामने शराब या सिगरेट का सेवन
श्वेता गांधी कहती हैं कि पहला बड़ा रेड फ्लैग यही है। अगर माता-पिता नियमित रूप से शराब या सिगरेट का सेवन करते हैं और कभी-कभी बच्चों के सामने भी करते हैं, तो यह बच्चे की भावनात्मक सेहत को नुकसान पहुंचाता है। शुरुआत में लगता है कि इससे कुछ नहीं होगा, लेकिन बच्चे के अवचेतन मन में यह छवि गहराई से बैठ जाती है।
“बच्चे उसी को रोल मॉडल मानते हैं जो वे घर में देखते हैं,” श्वेता बताती हैं। “इसलिए माता-पिता को अपनी इस आदत को गंभीरता से लेना चाहिए।”
घर का माहौल बिगड़ा हुआ होना
दूसरा रेड फ्लैग घर का वातावरण है। लगातार झगड़ा, तनाव या बहुत अधिक चुप्पी – ये सभी बातें बच्चे के दिमाग पर असर डालती हैं। श्वेता गांधी कहती हैं, “एक बच्चा तभी स्वस्थ मानसिकता से बड़ा होता है, जब घर का माहौल शांत और सकारात्मक हो। अगर घर में हमेशा नेगेटिविटी होगी, तो बच्चा अंदर ही अंदर असुरक्षित महसूस करने लगता है।”
कई शोध भी बताते हैं कि तनावपूर्ण पारिवारिक माहौल में पले बच्चे बड़े होकर रिलेशनशिप और आत्मविश्वास की समस्याओं से जूझते हैं।
पैरेंट्स खुद को न देखना, बच्चे को बार-बार सुधारना
तीसरा रेड फ्लैग माता-पिता का आत्म-निरीक्षण न करना है। कई पैरेंट्स खुद गुस्से में चिल्लाते हैं, लेकिन जब बच्चा आवाज ऊंची करता है तो उसे डांटते हैं। श्वेता कहती हैं, “बच्चे केवल सुनते ही नहीं, देखते भी हैं। आप जैसा व्यवहार करेंगे, बच्चा वही सीखेगा। अगर आप गुस्से पर नियंत्रण नहीं रखते, तो उसे भी ऐसा करना मुश्किल होगा।”
विशेषज्ञ मानते हैं कि आत्म-नियंत्रण और सकारात्मक उदाहरण देना ही बच्चे को अनुशासन सिखाने का सबसे असरदार तरीका है।
बच्चे की फीलिंग्स को न समझना
चौथा रेड फ्लैग है – बच्चे की भावनाओं को नजरअंदाज करना। अक्सर माता-पिता सोचते हैं कि “यह तो छोटा है, भूल जाएगा।” लेकिन बच्चों की भावनाएं मिटती नहीं, बल्कि उनके सबकॉन्शियस माइंड में बैठ जाती हैं।
श्वेता गांधी बताती हैं, “जब बच्चे बड़े होते हैं, तो यही अनदेखी की गई भावनाएं एंग्जाइटी, गुस्से या आत्म-सम्मान की कमी के रूप में बाहर आती हैं। इसलिए माता-पिता को बच्चे की भावनाओं को सुनना और मान्यता देना जरूरी है।”
गलत लाइफस्टाइल और उसका असर
पांचवां रेड फ्लैग है – माता-पिता की जीवनशैली। देर रात तक जागना, असंतुलित आहार, स्क्रीन पर अत्यधिक समय बिताना – ये सब आदतें बच्चों के लिए भी पैटर्न बन जाती हैं। श्वेता कहती हैं, “माता-पिता सोचते हैं कि बच्चे छोटे हैं, पर वे सब कुछ नोटिस करते हैं। गलत लाइफस्टाइल का असर उनके स्वास्थ्य और मानसिकता पर भी पड़ता है।”
विशेषज्ञों की सलाह: ‘पॉजिटिव पैरेंटिंग’ अपनाएं
एनएलपी मास्टर कोच के मुताबिक, पैरेंट्स को सबसे पहले अपने व्यवहार और आदतों पर ध्यान देना चाहिए। बच्चे को सुधारने से पहले खुद को देखना जरूरी है। “अगर माता-पिता अपने भीतर सकारात्मक बदलाव लाते हैं, तो बच्चे बिना कहे वही सीखते हैं,” श्वेता गांधी कहती हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि बच्चों के साथ समय बिताना, उनकी बात सुनना और उनके फीडबैक को गंभीरता से लेना ही पॉजिटिव पैरेंटिंग का आधार है।
सोशल मीडिया से शुरू हुई चर्चा
यह जानकारी इंस्टाग्राम पर वायरल हो रही एक रील से सामने आई है, जिसमें श्वेता गांधी ने पैरेंटिंग के इन पांच रेड फ्लैग्स पर बात की। कई लोग इसे शेयर कर रहे हैं और खुद की आदतों पर सोचने के लिए प्रेरित हो रहे हैं।
पैरेंट्स के लिए महत्वपूर्ण संदेश
विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चों के शुरुआती अनुभव उनके पूरे जीवन को प्रभावित करते हैं। इसलिए माता-पिता को चाहिए कि वे अपने घर के माहौल और व्यवहार को लेकर सजग रहें। यह लेख पूरी तरह इंस्टाग्राम रील पर आधारित है। एनबीटी इसकी सत्यता और सटीकता की जिम्मेदारी नहीं लेता।