भारत की पूर्व पीएम को आज भी इतिहास की ताकतवर और बेहरीन नेता के रूप में जाना जाता है। उन्होंने अपने पिता के आदर्शों और नियमों पर चलते हुए राजनीति की दुनिया में कदम रखा। मात्र 21 साल की उम्र में ही उन्हें राजनीति की काफी अच्छी समझ हो गई थी। पीएम की गद्दी पर बैठते हुए उन्होंने कई बड़े निर्णय लिए जिनमें देश में आपातकाल लगाना, निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण व 1971 का भारत-पाक युद्ध शामिल हैं।

ये उस दौर के वो बड़े फ़ैसले थे जिनके बारे में आज भी लोग चर्चा करते है। इंदिरा गांधी लंबे समय तक भारतीय राजनीति में काफी सक्रिय रहीं। आइए आज आपको बताते हैं उनके बारे में अनसुने किस्से।
इलाहाबाद में इंदिरा गांधी का जन्म हुआ था। पश्चिम बंगाल की Visva-Bharati University व University of Oxford से उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की। जब भारत स्वतंत्र हुआ तब उन्होंने पिता के लिए राजनीतिक प्रचारक के रूप में काम करना प्रारंभ किया। वो अपने पिता के साथ विदेश दौरे पर जाती थी जिससे उन्हें राजनीति के हर पहलू को समझने में मदद मिलती थी।

मीडिया द्वारा मिली जानकारी के अनुसार उन्होंने बचपन में कभी खेल नहीं खेला बल्कि वो ऊंचे टेबल पर चढकर नौकरों को जुटा कर भाषण दिया करती थी…उन्होंने बचपन में खेल भी राजनीति से जुड़ा ही खेला..आपको जानकर शायद हैरानी हो कि उन्होंने बचपन में असहयोग आंदोलन के समय बाल चरखा संघ और 1930 में बच्चों की वानर सेना की स्थापना की थी..
रामायण से वानर सेना का ख्याल उन्हें आया था। जिस तरह लंका विजय के लिए प्रभु श्रीराम की मदद वानर सेना ने की थी, उसी तर्ज पर अंग्रेज़ों से लड़ने के लिए इंदिरा गांधी ने वानर सेना बनाई थी।
उन्हें सितंबर 1942 में कैदी बना लिया गया था… 13 मई 1943 तक 243 दिनों के लिए 8 महीने की कैद हुई थी। तब उनकी उम्र 25 वर्ष की थी. 1947 में उन्होंने गांधी के मार्गदर्शन में दिल्ली के दंगा प्रभावित क्षेत्रों में काम किया।
अपने परिवार का रूतबा कायम रखते हुए और परंपराओं का पालन करते हुए इंदिरा ने स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लिया। बालअवस्था में देश के लिए वो जो कर सकती थीं, उन्होंने वो किया। जिस समय देश में विदेशी सामानों यानी ब्रिटिश सामानों का बहिष्कार चल रहा था।
उस दौरान इंदिरा गांधी के घर में ब्रिटेन से आई सभी चीज़ों को दहन किया जा रहा था। इसमें 5 साल की इंदिरा गांधी ने भी हिस्सा लिया और अपनी सबसे प्यारी गुड़िया जो कि इंग्लैंड से आई थी, उसे आग के झोंक दिया था। इस बात से सोचा जा सकता कि महज पांच वर्ष की आयु में इंदिरा काफी गंभीरता से सोचने लगीं थी कि उन्होंने स्वदेशी आंदोलन का समर्थन कर डाला था।