Begum Akhtar: इनको गजल की मल्लिका कहें या बेहतरीन गायिका। शुद्घ उर्दू बोलने वाली बेगम अख्तर… ठुमरी और दादरा की साम्राज्ञी थीं। उनके गीतों और गजलों के चर्चे आज भी किसी महफिल की शान बढ़ा देते हैं।.. बचपन में घर में बिब्बी के नाम से मशहूर बेगमअख्तर फैजाबाद के शादीशुदा वकील असगर हुसैन और तवायफ मुश्तरीबाई की बेटी थीं।
मुश्तरीबाई को जुड़वा बेटियां हुई थीं। लेकिन चार साल की उम्र में दोनों बहनों ने जहरीली मिठाई खा ली जिसके बाद बिब्बी तो बच गईं लेकिन उनकी बहन दुनिया को छोड़ गई। असगर ने भी मुश्तरी और बेटी बिब्बी को तन्हा छोड़ दिया और दोनों को अकेले ही जिंदगी में संघर्ष करना पड़ा। उन्होंने कई उस्तादों से संगीत की शिक्षा ली
15 साल की उम्र में अख्तरी बाई फैजाबादी के नाम से पहली बार मंच पर उतरीं। उनकी आवाज में जिंदगी के सारे दर्द साफ झलकते थे। यह कार्यक्रम बिहार के भूकंप पीड़ितों के लिए चंदा इकट्ठा करने के लिए कोलकाता में हुआ था। कार्यक्रम में भारत कोकिला सरोजनी नायडू भी मौजूद थीं। वे अख्तरी बाई के गायन से बहुत प्रभावित हुईं और उन्हें आशीर्वाद दिया। बाद में नायडू ने एक खादी की साड़ी भी उन्हें भेंट में भिजवाई।
उन्होंने उनकी मधुर ग़ज़लों, ठुमरी, दादरा आदि के साथ कई ग्रामोफोन रिकॉर्ड जारी किए। 1930 के दशक में, बेगम अख्तर ने कुछ हिंदी फिल्मों में भी अभिनय किया, जिनमें अमीना (1934), मुमताज बेगम (1934) शामिल हैं। ), जवानी का नशा (1935), नसीब का चक्कर (1935)। इन सभी फिल्मों में उन्होंने अपने सारे गाने खुद ही गाए।
बेगम अख्तर ने आखिरी बार अहमदाबाद में एक संगीत कार्यक्रम में प्रस्तुति दी थी। उन्होने अपने जीवन के आखिरी पलो तक गाना गाया और 30 अक्टूबर 1974 को दुनिया को अलविदा कह दिया।