
क्या है भानगढ का सच ? भानगढ का नाम सुनते ही दिल में दहशत की घंटियां क्यों बजने लगती हैं। आखिर भानगढ का रहस्य क्या है, क्या यहां वाकई भूतों का बसेरा है , या फिर सिर्फ सुनी सुनाई बातें है ? क्या वाकई यहां पर जाने वाला व्यक्ति वापस लौटकर नहीं आता।

राजस्थान के अलवर में स्थित भानगढ़ किला डरावनी जगह के रूप में जाना जाता है। आलम यह है कि यहां कोई इसके आस-पास भी आने से डरता है। इस किले में प्रवेश वर्जित है। आज हम आपको बताएंगे इस किले से जुड़ी खास बातों के अलावा इसके भूतिया होने के पीछे की कहानियों के बारे में,
कैसे हुआ भानगढ़ का विनाश…
एक खूबसूरत रानी और तांत्रिक का श्राप

भानगढ़ के विनाश के और भी कई किस्से प्रचलित हैं, लेकिन सबसे ज्यादा चर्चे में कहानी यह है कि इस राज्य में तांत्रिकों, साधुओं और ज्योतिषियों को बेहद सम्मान हासिल था। महाराजा छतर सिंह की रानी रत्नावती तीतरवाड़ा की बेटी थी, वह बेहद रूपवती तो थी ही, साथ ही तंत्र-मंत्र की विधाओं में भी पारंगत थी।
कहा जाता है कि सिंघा नाम के एक तांत्रिक ने भानगढ़ के बारे में जब यह सुना कि यहां तांत्रिकों का सम्मान किया जाता है तो वह यहां पहुंच गया और महल के सामने स्थित एक पहाड़ी पर अपना स्थान बनाकर साधना करने लगा।

उसने पहाड़ी से रानी को देख लिया और उसके सौंन्दर्य पर मोहित हो गया। वह अच्छी तरह जानता था कि बिना तांत्रिक शक्तियों का प्रयोग किए रानी तक पहुंच पाना भी असंभव है, दूसरा उसे यह भी पता था कि वह जिसे पाना चहता है वह कोई साधारण स्त्री नहीं है, बल्कि उसी राज्य की रानी है, जहां उसे आश्रय मिला हुआ है। राजा को यदि उसके प्रयासों की भनक भी मिल गई तो उसके प्राण बचाने वाला कोई नहीं होगा। इस सबके बाद भी वह रानी को मन से नहीं निकाल पा रहा था। अंततः इस सेवड़ा तांत्रिक ने अपनी तांत्रिक विद्या से रानी रत्नावती को वश में करने का फैसला किया।

लेकिन वह सफल न हो सका। लगातार असफलताओं के कारण रानी को पा लेने की इच्छा उसके मन में बदला लेने की हद तक बढ़ती जा रही थी। दूसरी ओर, सिंघा को इस बात का रत्ती भर भी ज्ञान नहीं था कि रानी रत्नावती भी तंत्र विद्या की अच्छी जानकार है। और अंत में वह भूल कर बैठा, जिसके कारण न केवल वह अपनी मृत्यु का, बल्कि भानगढ़ के विनाश का भी कारण बना।
हुआ यह कि,

सिंघा ने रानी की एक दासी को अपनी चाल का हिस्सा बनाया। तांत्रिक ने अपने वशीकरण मंत्र से बंधे तेल का एक कटोरा उस दासी को यह समझाकर दिया कि हम तंत्रसिद्ध बाबा हैं, रानी को यह तेल देना और उन्हें यह समझाना कि इस तेल का उपयोग अपने शरीर पर करें, इससे उनका कल्याण होगा।
राजमहल में पहुंचकर दासी ने जो भी घटित हुआ था वह रानी को बताया, साथ ही उस तांत्रिक बाबा का हुलिया भी बताया ।
रानी रत्नावती ने अपनी सिद्धि से जान लिया कि तेल में वशीकरण के साथ ही मारक मंत्र व तंत्र का प्रयोग किया गया है। रानी को समझ आ गया कि तांत्रिक ने उसे अपने मोहपाश में बांधने के लिए ही यह तेल दासी के हाथ भिजवाया है।
रानी के क्रोध की सीमा न रही और इसी गुस्से में उसने उसी समय अपने सामने रखी तेल की कटोरी पर सिद्ध मारक मंत्र पढ़कर वहीं से सामने वाली पहाड़ी पर फेंका, जहां वह तांत्रिक अनुष्ठान कर रहा था। तेल एक भयानक आवाज के साथ शिला के रूप कहर बनकर तांत्रिक के ऊपर टूटा और सिंघा वहीं मृत्यु को प्राप्त हो गया। कहते हैं कि मरने से पहले वह श्राप दे गया कि मंदिरों को छोड़कर सारा भानगढ़ नष्ट हो जाएगा और सभी लोग मारे जाएंगे।

भानगढ़ के आसपास के गांवों के अनेक लोग मानते हैं कि तांत्रिक के श्राप के कारण ही किला सहित सभी इमारतें खंडहर हो गई, लेकिन मंदिरों का कुछ नहीं बिगड़ा। कुछ लोगों का विश्वास है कि इस श्राप से अकाल मृत्यु को प्राप्त हुए लोगों की आत्माएं आज भी यहां भटकती हैं और इस जगह के भुतहा होने व फिर से न बस पाने का यही कारण माना जाता है।