सावन में रखें इन बातों का ध्यान,  भूलकर भी न चढ़ाएं शिवलिंग पर ये पूजा सामग्री !

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भगवान शिव की उपासना के लिए सावन का महीना बेहद खास होता है। इस माह ज्यादा से ज्यादा शिव पूजन करना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि  सावन महीने में भगवान शिव की पूजा करने से सभी तरह की मनोकामनाएं जल्दी पूरी हो जाती हैं।  सावन में शिवलिंग के जलाभिषेक करने का विशेष महत्व होता है।

शास्त्रों में कुछ पूजा सामग्री को शिवजी को अर्पित करने की मनाही होती है। ऐसे में इन चीजों का उपयोग भगवान शिव की पूजा आराधना और तपस्या में बिल्कुल भी प्रयोग नहीं करना चाहिए। आइए जानते हैं  भगवान शिव की पूजा में किन-किन चीजों को नहीं चढ़ाना चाहिए और क्यों,

न चढ़ाये भगवान शिव को सिन्दूर

सुहागिन स्त्रियां अपने पति की लंबे और स्वस्थ जीवन की कामना के लिए  अपने मांग में सिंदूर लगाती हैं और भगवान शिव को भी अर्पित करती हैं। लेकिन शिव तो विनाशक हैं, यही वजह है कि सिंदूर से भगवान शिव की सेवा करना अशुभ माना जाता है।

न चढ़ाये भगवान शिव को हल्दी

भगवान् शिव जी को कभी भी हल्दी नहीं अर्पित करना चाहिए  क्योंकि हल्दी को स्त्री से संबंधित माना गया है और शिवलिंग पुरुषत्व का प्रतीक है,  ऐसे में शिव जी की पूजा में हल्दी का उपयोग करने से पूजा का शुभ फल नहीं मिलता है। यही कारण है कि शिवलिंग पर हल्दी नहीं चढ़ाई जाती है।  इसलिए शिवलिंग पर ठंडी वस्तुएं जैसे बेलपत्र, भांग, गंगाजल, चंदन और कच्चा दूध ही चढ़ाये।

न करें शंख का प्रयोग

बता दें,  भगवान शिव की पूजा में कभी शंख का प्रयोग नहीं किया जाता है। दैत्य शंखचूड़ के अत्याचारों से देवता परेशान थे और  भगवान शंकर ने उसका वध किया था, जिसके बाद उसका शरीर भस्म हो गया, उस भस्म से शंख की उत्पत्ति हुई थी। शिवजी ने शंखचूड़ का वध किया इसलिए कभी भी शंख से शिवजी को जल अर्पित नहीं किया जाता है।

न चढ़ाएं तुलसी के पत्ते

हिंदू धर्म में तुलसी के पौधे को बेहद पवित्र माना गया है और पूजा अनुष्ठान में तुलसी के पत्तों को चढ़ाने की परंपरा है। लेकिन भगवान शिव की पूजा में तुलसी दल का उपयोग कभी नहीं करना चाहिए।  पौराणिक मान्यता के अनुसार,  भगवान शिव ने तुलसी के पति असुर जालंधर का वध किया था। इसलिए उन्होंने स्वयं भगवान शिव को अपने अलौकिक और दैवीय गुणों वाले पत्तों से वंचित कर दिया।

न चढ़ाएं केतकी के फूल

साथ ही शिवलिंग पर केतकी के फूल को चढ़ाना वर्जित माना जाता  है। शिवपुराण की कथा के अनुसार,  केतकी फूल ने ब्रह्मा जी के झूठ में साथ दिया था, जिससे रुष्ट होकर भोलनाथ ने केतकी के फूल को श्राप दिया और कहा कि शिवलिंग पर कभी केतकी के फूल को अर्पित नहीं किया जाएगा।

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