75 साल की उम्र में जहां ज़्यादातर लोग आराम और सुकून को अपनाते हैं, वहीं केरल की रहने वाली मीनाक्षी अम्मा अपनी दमदार चालों, तलवारों और लाठियों के ज़रिए आज भी लोगों को हैरान करती हैं। वे सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में कलारीपयट्टू—दुनिया की सबसे पुरानी और कठिन मार्शल आर्ट—की विशेषज्ञ और एक प्रेरणा हैं।

7 साल की उम्र में थामी तलवार और फिर नहीं रुकी
मीनाक्षी अम्मा ने महज़ 7 साल की उम्र में कलारीपयट्टू सीखना शुरू किया। यह कोई आम खेल नहीं था, बल्कि एक ऐसा युद्ध कौशल है जो न सिर्फ शारीरिक शक्ति बल्कि मानसिक संतुलन और अनुशासन की भी मांग करता है। उन्होंने इस प्राचीन विद्या को अपनाया, सीखा और फिर उसे जीवन का मकसद बना लिया।
गुरुकुल में आज भी गूंजती हैं युद्ध की पुकार
आज भी मीनाक्षी अम्मा अपने गुरुकुल में सैकड़ों छात्रों को यह विद्या सिखाती हैं। उनके हाथों में अब भी वही दम है, वही लय है, जो किसी युवा योद्धा में होती है। तलवार हो या लाठी, मीनाक्षी अम्मा की हर चाल में अनुभव, समर्पण और आत्मबल की झलक मिलती है।
सम्मान, शौर्य और सोशल मीडिया पर सनसनी
उनके योगदान को सम्मानित करते हुए भारत सरकार ने उन्हें 2017 में पद्मश्री से नवाज़ा। उनकी ऊर्जा और फुर्ती सोशल मीडिया पर भी चर्चा का विषय बन चुकी है। लोग उन्हें प्यार से “कलारीपयट्टू की ग्रैंडमास्टर” कहते हैं। वीडियो और तस्वीरों में उनका आत्मविश्वास देखते ही बनता है—जिसे देखकर युवा भी प्रेरणा लेते हैं।
महिलाओं के सशक्तिकरण की मिसाल
मीनाक्षी अम्मा सिर्फ़ एक मार्शल आर्ट ट्रेनर नहीं हैं, बल्कि महिला सशक्तिकरण की एक जीवंत मिसाल हैं। उन्होंने यह साबित किया है कि महिलाएं न सिर्फ आत्मरक्षा कर सकती हैं, बल्कि परंपराओं को आगे बढ़ाने में भी अग्रणी भूमिका निभा सकती हैं। वे कई लड़कियों और महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रशिक्षित कर रही हैं।
असली ताकत उम्र में नहीं, समर्पण में है
मीनाक्षी अम्मा की कहानी यह बताती है कि उम्र सिर्फ एक संख्या है। अगर दिल में जुनून और आत्मा में समर्पण हो, तो कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं। उन्होंने हमें दिखाया है कि कैसे परंपरा और आधुनिकता का संतुलन बनाकर हम न सिर्फ खुद को, बल्कि समाज को भी सशक्त बना सकते हैं।
जो तलवार से नहीं—समर्पण से जन्मी है
मीनाक्षी अम्मा जैसी शख्सियतें विरले ही जन्म लेती हैं। उनका जीवन, उनकी ऊर्जा और उनका दृष्टिकोण हमें यह सिखाता है कि असली योद्धा वही है जो हर हाल में लड़ना जानता है—उम्र से, समाज से और खुद की सीमाओं से।