आज के दौर में जहां कुछ लोगों के पास खुद के लिए भी समय नहीं है वहीं कुछ लोग दूसरों के लिए हर वक्त लगे हैं। वहीं आज इस कड़ी में हम बात करने वाले हैं एक ऐसी सोशल एक्टिविस्ट की जिन्होंने युवतियों के भविष्य को उज्जवल करने का जिम्मा उठाया। उन्होंने खुद कभी रोशनी की किरण नहीं देखी लेकिन 200 दृष्टिहीन लड़कियों उज्जवल भविष्य दे चुकी है… मुक्ताबेन दगली स्वंय एक नेत्रहीन है लेकिन गैर लड़कियों के लिए गए उनके कार्य की सराहना जितनी भी की जाए उतनी कम है।

1995 में मुक्ता जी ने अपनी पति के साथ मिलकर गुजरात के सुरेंद्रनगर में ‘ श्री प्रगना चक्षु महिला सेवा कुंज’ का आरंभ किया। वहां मुक्ता ने उनके परिवार सहित लड़कियों को भोजन और रहने के लिए स्थान मोहैया कराया। अब तक ये जोड़ा 30 अपंग और 25 बूढ़े और बेसहारों को पनाह दे चुका है।
जानकारी के लिए बता दें कि जब मुक्त 7 वर्ष की थी तो मेनिनगिटीस से संक्रमण होने के कारण उनकी आखों की रोशनी चली गई… जिसके कारण उनकी स्कूल की पढ़ाई अधूरी रह गई। लेकिन उनको पढ़ने का बहुत शौक था।
वहीं जब मुक्ता 14 साल की हुई तो एक बार उनकी दोस्त गर्मियों की छुट्टियों के बाद वापस नहीं आई.. बाद में ये जानकारी मिली कि उसे जहर खिला के मार दिया गया..दोस्त के जाने का गम उन्हें कुछ यूं हुआ कि उन्होंने ये ठान लिया कि अबसे वो हर नेत्रहीन महिला की मदद करेंगी जिन्हें उन्ही के घर वाले बोझ समझते हैं।
एक इंटरव्यू में मुक्ता ने बताया कि- “मेरी सहेली ने अक्सर मुझे घर पर होने वाली क्रूरता के बारे में बताया था। उसे बचा हुआ खाना दिया जाता था, परिवार के अन्य सदस्यों या पड़ोसियों से बातचीत करने की इजाज़त नहीं थी। उसके माता-पिता उसे कभी-कभी अन्य जानवरों के साथ शेड में रहने के लिए मजबूर करते थे।”

“उस घटना ने मुझे बहुत प्रभावित किया. हालांकि मुझे अपनी एक दोस्त को खोने का दुख था, लेकिन मैं गुस्से में थी. मेरे जीवन का उद्देश्य स्पष्ट हो गया. मुझे पता था कि मैं नेत्रहीन लड़कियों की मदद करना चाहती हूं, जो अपने माता-पिता के लिए बोझ थीं”।
मुक्ता ने कहा-“मेरे परिवार, दोस्त और पति के कारण ये मुमकिन हो पाया” मुक्ता ने मिशन के बारे में बताया और कहा, “मैं भाग्यशाली हूं कि मेरे दोस्तों और परिवार ने मुझे अलग नहीं समझा, उनका समर्थन और प्रोत्साहन कारण था कि मैं नेत्रहीन लड़कियों के लिए एक छात्रावास खोलने के अपने सपने को पूरा करने में सक्षम रही”।
“मुझे अपना बच्चा नहीं चाहिए था, क्योंकि मैं अपना जीवन लड़कियों को समर्पित करना चाहती थी. दूसरी बात, मैं अपनी आज़ादी से समझौता करने को तैयार नहीं थी। बात 80s के दशक की है, जब एक भारतीय लड़की के लिए शादी सबसे अहम चीज़ हुआ करती थी। मुझे अभी भी विश्वास नहीं हो रहा है कि मुझे पंकज जैसे पति मिले, जो मेरे सबसे मजबूत स्तंभ रहे हैं।”
किसी भी मंज़िल तक की सीढी सीधी नहीं होती है मुक्ता और उनके पति पंकज को भी यहां तक पहुंचने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ी। 13 साल तक उन्होंने अलग-अलग स्कूल और सरकारी ऑफ़िस में चक्कर लगाए और फिर जाकर उन्हें डोनेशन मिला। जिससे उन्होंने हॉस्टल और स्कूल का निर्माण कराया। यहां पर 1-12 साल की लड़कियों के लिए स्कूल, गेस्ट हाउस, म्यूज़िक स्कूल, हॉस्टल और अन्य सुविधाएं हैं।

इसी के साथ इस कैंपस में नेत्रहीन कॉलेज जाने वाली लड़कियों के रहने की जगह भी है। जहां उन्हें कंप्यूटर, होम साइंस, सिलाई की ट्रेनिंग भी दी जाती है ताकि वो किसी पर भी निर्भर न रहें।
साथ ही कॉलेज जाने वाली किसी भी लड़की को शादी करनी हो तो मुक्ता उनकी शादी भी करवाती हैं। शादी करवाने से पहले लड़के की अच्छी तरह से जांच पड़ताल भी की जाती है।