ज़िंदगी तो चलते रहने का नाम है और परिवर्तन शाश्वत नियम। समय के साथ अभिभावक जो अपनी संतान को देते हैं वह है परवरिश। परवरिश के तौर-तरीकों पर हमेशा ही चर्चा होती रही है । हर मां-बाप चाहते हैं कि वह अपने बच्चे की ऐसी परवरिश करें कि उनकी संतान आगे चलकर एक कामयाब इंसान साबित हो। इसमें दो तरह की परवरिश इस समय देखी जा रही है। एक वैसी जो हमने अपने मां-बाप से सीखी और एक है आज के नये जमाने के माता-पिता की मॉडर्न पेरेटिंग आइए इस लेख में चर्चा करते हैं इन दोनों के बारे में –

पारिवारिक मामलों से बच्चों को दूर रखना
बच्चे का मन है बच्चा सवाल पूछता है? कई बार मां-बाप का अपने भाई-बहनों या रिश्तेदारों से झगड़ा हो जाता है। पारंपरिक परवरिश की बात करें तो बच्चे के अंदर हिम्मत ही नहीं होती। संबंधों के बारे में अगर बच्चा हिम्मत करके पूछ भी ले तो यह कह दिया जाता था कि यह बच्चों के काम की बात नहीं है। यह तो सिर्फ एक उदाहरण है। ऐसी बहुत सी बातें हैं इस तरह की परवरिश जहाँ बहुत मामलों में बच्चों को स्थिति से अलग रखा जाता है। उन्हें लगता है कि बच्चे उस स्थिति को जानकर क्या करेंगे। कहीं ऐसा न हो कि ये उसे लेकर कोई नकारात्मक बात अपने मन में बना लें।
निर्णय लेने की स्वतंत्रता न देना
पारंपरिक परिवार की बात करें तो घर के बॉस पिता ही हुआ करते थे, जो भी जैसा भी फैसला उन्होंने कर दिया वह निर्णय अंतिम होता हो. एक और बात थी वो जब भी कोई फैसला लेते थे वह फैसला उन्होंने क्यों लिया, किस आधार पर लिया इसके बारे में बताना किसी को जरूरी नहीं समझते थे। आज की परवरिश अगर माता- पिता बच्चों के लिए कोई निर्णय लेते भी हैं तो एक तो उसमें बच्चों की राय और पसंद शामिल होती है। फैसला किस वजह से लिया गया यह भी माता-पिता अपने बच्चों को बताते हैं।
छवि को लेकर सचेत रहते है माता-पिता
आजकल के बच्चे और उनके माता-पिता अपनी छवि को लेकर काफी सचेत रहते हैं। पुराने समय में माता-पिता बच्चे को डांटने या हाँथ उठाने से पहले सोचते नहीं थे। गलती करने पर किसी के भी सामने डांट या मार पड़ जाया करती थी, फिर चाहे कोई दोस्त हो, पास-पड़ोसी हो या कोई रिश्तेदार जबकि आज के माता-पिता अपने अलावा बच्चों के बारे में भी सोंचते हैं। आजकल के बच्चे बेहद संवेदनशील और व्यावहारिक हो गए हैं।
मनी मैनेजमेंट
नये जमाने की परवरिश में बड़े होते बच्चों को आत्मनिर्भर बनाया जा रहा है। उसके के अनुसार उन्हें पैसे दिए जाते हैं। हां, यह सच है कि अगर बच्चों के पास पैसे कम होने लगते हैं तो वह अपने मां-बाप के पास जाते हैं। लेकिन बहुत हद तक आज बड़े होते बच्चे किफायत में रहना सीख पा रहे हैं। पारंपरिक परवरिश में पैसे की बात भी बड़ों की होती थी। बच्चों को कहा जाता था जो जरूरत है वह मांग लो बच्चा अपने पास पैसा रखकर खर्च नहीं करता था। उस दौर के बच्चों को तो याद ही होगा कि अगर कोई रिश्तेदार जाते समय पैसे देता था तो कितनी खुशी होती थी।
एक चीज जो नहीं बदली
चाहे नये जमाने की हो या फिर पुराने जमाने की परवरिश एक चीज जो नहीं बदली वह है माता- पिता का प्यार रात को पुराने बच्चे भी कहानी सुनते थे और आज के बच्चे भी सुनते हैं। बस उनका नाम बदलकर बेड टाइम स्टोरीज हो गया।