भारत में मनाया जाने वाला रंगों का त्योहार होली जितना रंगीन है, उससे भी अधिक रंगीन होते हैं इसे मनाने के तरीके। इस दिन जमीन से लेकर आसमान तक सब कुछ रंगीन दिखाई देता है। लेकिन इस त्योहार की खास बात यह कि स्थान बदलने और दिन बीतने के साथ इसके रंग भी बदलते लगते हैं।
अगर आप उत्तर से दक्षिण की ओर बढ़ेंगे तो आप पाएंगे कि होली का रंग हल्का पड़ता जाएगा।
होलाष्टक होली के ठीक आठ दिन पहले लग जाता है। सनातन परंपरा के अनुसार इस दौरान शुभ कार्य नहीं करने चाहिए। ये आठ दिन शोक के दिन माने जाते हैं। भले ही उत्तर भारत में ये शोक का रंग आपको न नजर आए लेकिन दक्षिण भारत में इन दिनों शोक मनाया जाता है या यूं कहें कि इस दौरान दक्षिण भारत शोक में डूबा रहता है। जिसकी वजह से यहां के कई शहरों में होली की खुशी तक नहीं मनाई जाती है। अब आप सोच रहें होंगे कि एक ही देश में एक ही त्योहार को लेकर इतनी असमानता क्यों है?
आपको इन सवालों का जवाब पौराणिक कथाओं में मिलेगा. दरअसल आपको बता दें कि, भारत में संस्कृति का उत्थान दक्षिण भारत से ही आरंभ हुआ। ऐसे में किसी समाज की उन्नति और प्रगति के लिए दो फैक्टर सबसे ज्यादा जरूरी हैं वो हैं युद्ध और प्रेम। दर्शनशास्त्र के मुताबिक युद्ध से हर एक चीज नहीं जीती जा सकती है, लेकिन प्रेम एक ऐसा तत्व है, जिसकी मदद से हारा हुआ व्यक्ति भी विजेता बन सकता है।

इसीलिए दक्षिण भारतीय संस्कृति में कार्तिकेय यानि मुरुगन जो शत्रुओं के विनाशक हैं और कामदेव, जो कि प्रेम के देवता हैं.. इन दोनों की पूजा की जाती है।
दक्षिण भारत शैलियों और मंदिरों की नक्काशियों में आपको मुरुगन और कामदेव की प्रतिमाएं जरूर देखने को मिलेंगी। वहीं इन दोनों देवों का संबंध महादेव से है।
दक्षिण भारत में कामदेव की मान्यता इसलिए अधिक है क्योंकि भले ही युद्ध कितना ही जरूरी क्यों न हो और व्यक्ति भले ही सारे संसार का विजेता क्यों न बन जाए प्रेम से बड़ा कुछ नहीं हो सकता।
शिव महापुराण के मुताबिक राक्षस तारकासुर को वरदान मिला था कि उसका वध शिव पुत्र की करेगा। दक्ष के यज्ञ में सती के आत्मदाह के बाद देवताओं की तारकासुर के वध को लेकर सारी आस खत्म हो गई थी लेकिन बाद में महादेव का माता पार्वती से विवाह संपन्न हुआ तो एक बार फिर देवताओं की उम्मीद जागी।

दूसरी तरफ तारकासुर के अत्याचार दिनों-दिन बढ़ते जा रहे थे और उसने भी अपना जीवन बचाने के लिए कई चाले चलनी शुरु कर दीं।
वहीं दूसरी तरफ महादेव, देवी पार्वती से विवाह होते ही फिर एक बार ध्यान मग्न गए। तब देवताओं ने कामदेव को शिव के पास भेजा ताकि वो वसंत ऋतु के बाण शिव पर चलाएं और देवी रति के साथ सम्मोहन नृत्य करके महादेव का ध्यान भंग कर दें।
कामदेव ने वसंत के बाणों को शिव पर चलाना शुरु किया जिसमें से एक बाण महादेव के त्रिनेत्र पर जा लगा। जिससे शिव क्रोधित हो गए और उनकी आंखों से निकली ज्वाला से कामदेव तुरंत भस्म हो गए। कहा जाता हैं कि कामदेव ने निरंतर आठ दिनों तक महादेव की समाधि तोड़ने का प्रयास किया था…इसलिए इन आठ दिनों को अशुभ माना जाता है।
हालांकि इन 8 दिनों के बाद पूर्णिमा और अगले दिन होली मनाई जाती है, लेकिन दक्षिण भारत में इन दिनों कोई उत्साह देखने को नहीं मिलता है।