वो जमाना चला गया जब बच्चों में कुपोषण (Malnutrition) सबसे बड़ी स्वास्थ्य समस्या मानी जाती थी। आज के समय में बच्चों का अंडरवेट होना कम और मोटापे की समस्या अधिक चिंता का कारण बन चुकी है। बदलती जीवनशैली, जंक फूड्स, मीठे पेय और शारीरिक गतिविधियों की कमी ने बच्चों के स्वास्थ्य के सामने नई चुनौती खड़ी कर दी है। यूनिसेफ (UNICEF) की हालिया रिपोर्ट ने इस ट्रेंड को लेकर चेतावनी दी है और इसे वैश्विक स्वास्थ्य संकट बनने का खतरा बताया है।
रिपोर्ट के मुख्य तथ्य
190 से अधिक देशों के आंकड़ों पर आधारित इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 5 से 19 साल के बच्चों में कम वजन की समस्या साल 2000 से 12% से घटकर 9.2% रह गई है। वहीं इसी अवधि में बच्चों और किशोरों में मोटापे की दर 3% से बढ़कर 9.4% हो गई है। अफ्रीका और दक्षिण एशिया को छोड़कर लगभग सभी देशों में अब कम वजन से ज्यादा मोटापे की समस्या है। यूनिसेफ की कार्यकारी निदेशक कैथरीन रसेल के अनुसार “कुपोषण” शब्द में अब न केवल कम वजन बल्कि मोटापा भी शामिल है।
क्यों बढ़ रहा है बच्चों में मोटापा?
यूनिसेफ की रिपोर्ट और विशेषज्ञों के अनुसार बच्चों में मोटापे की बढ़ती दर के पीछे कई वजहें हैं।
जंक फूड और मीठे पेय
फास्ट फूड्स, पैकेज्ड स्नैक्स और शुगर वाले ड्रिंक्स का सेवन बच्चों में लगातार बढ़ रहा है। ये कैलोरी तो देते हैं लेकिन पोषण नहीं।
शारीरिक गतिविधियों की कमी
बच्चे बाहर खेलने की बजाय मोबाइल, टीवी और कंप्यूटर पर ज्यादा समय बिताते हैं। स्कूलों और पार्कों में खेलकूद कम हो गया है।
अनियमित दिनचर्या और नींद की कमी
देर रात तक जागना, समय पर न खाना, और नींद पूरी न होना भी मोटापे को बढ़ाता है।
माता-पिता की व्यस्तता
व्यस्त जीवनशैली के कारण माता-पिता बच्चों के भोजन और एक्टिविटी पर कम ध्यान दे पाते हैं।
बढ़ता मोटापा: बच्चों के स्वास्थ्य के लिए खतरा
बचपन में बढ़ता मोटापा केवल दिखावे की समस्या नहीं है। यह आगे चलकर गंभीर बीमारियों की वजह बन सकता है –
- डायबिटीज (शुगर)
- हाई ब्लड प्रेशर
- हार्ट प्रॉब्लम्स
- मानसिक तनाव
आत्मविश्वास की कमी
यूनिसेफ के अनुसार, बच्चे को ज्यादा वजन वाला या मोटा तब माना जाता है, जब उनका वजन उनकी उम्र, लिंग और कद के हिसाब से हेल्दी वजन से काफी ज्यादा होता है।
समाधान: कैसे रोका जाए बचपन का मोटापा
यूनिसेफ की रिपोर्ट के बाद स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने पैरेंट्स और स्कूल्स को मिलकर कदम उठाने की सलाह दी है।
हेल्दी डायट
बच्चों के खाने में सब्जियां, फल और हाई-फाइबर फूड शामिल करें। मीठे और तैलीय खाद्य पदार्थ कम दें।
फिजिकल एक्टिविटी
रोजाना कम से कम 1 घंटा शारीरिक गतिविधि करवाएं – जैसे खेलकूद, डांस, साइकिलिंग या योग।
स्क्रीन टाइम को नियंत्रित करें
मोबाइल, टीवी और गेमिंग में बच्चों का समय सीमित करें।
परिवार खुद बने रोल मॉडल
माता-पिता खुद हेल्दी लाइफ़स्टाइल अपनाएं ताकि बच्चे प्रेरित हों।
विशेषज्ञों की राय
यूनिसेफ की कार्यकारी निदेशक कैथरीन रसेल कहती हैं – “कुपोषण अब केवल कम वजन नहीं है। मोटापा भी कुपोषण की श्रेणी में आता है। अगर अभी कदम नहीं उठाए गए, तो बचपन का मोटापा आने वाले वर्षों में एक वैश्विक स्वास्थ्य संकट बन सकता है।”
भारत में स्थिति
भारत में भी यह समस्या धीरे-धीरे बढ़ रही है। बड़े शहरों और मेट्रोपॉलिटन क्षेत्रों में बच्चों के खान-पान में जंक फूड की हिस्सेदारी ज्यादा है। छोटे शहरों में भी पैकेज्ड फूड्स का चलन बढ़ा है। सरकारी स्तर पर स्कूलों में हेल्दी फूड पॉलिसी, खेलकूद की अनिवार्यता और हेल्थ एजुकेशन की जरूरत बताई जा रही है।
कुपोषण की जगह मोटापा बच्चों के लिए नई चुनौती बन चुका है। समय रहते सही भोजन, नियमित शारीरिक गतिविधि और जागरूकता ही बच्चों को इस संकट से बचा सकती है। यूनिसेफ का अलर्ट बताता है कि अगर परिवार, स्कूल और सरकार मिलकर कदम नहीं उठाएंगे तो आने वाले सालों में बचपन का मोटापा दुनिया की सबसे बड़ी स्वास्थ्य समस्याओं में शामिल हो सकता है।